Trisparsha Ekadashi Vrat Katha

Trisparsha Ekadashi Vrat Katha

Trisparsha Ekadashi Vrat Katha : भगवान शिवजी के सामने देवर्षि नारदजी ने प्रश्न किया कि सर्वोच्च परमेश्वर, कृपया आप त्रिस्पृशा नामक व्रत का विस्तार से वर्णन करें। इसे जानकर मनुष्य कैसे कर्मों की जंजाल से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

भगवान शिवजी ने उत्तर दिया कि ज्ञानीवर्यों, इस विशेष व्रत का निर्माण देवाधिदेव भगवान विष्णुजी ने मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से किया है। इसे ‘वैष्णवी तिथि’ कहा जाता है। भगवान माधवजी ने गंगाजी के पापहरण के संबंध में इसका उल्लेख किया था। जब एक ही दिन में एकादशी, द्वादशी और रात्रि का अंतिम समय में त्रयोदशी भी आ जाए, तो उसे त्रिस्पृशा कहा जाता है। यह तिथि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रदानकर्ता है, और यह सौ करोड़ तीर्थ स्थलों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन को भगवान और सदगुरु की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

त्रिस्पृशा एकादशी के उपवास से लाभ इतना होता है कि जैसे आपने हजार एकादशी व्रतों का पालन किया हो। जो भी इस व्रत को रात भर जागकर करता है, वह भगवान विष्णु के स्वरूप में समाहित हो जाता है।

यह व्रत इतना शक्तिशाली है कि यह सम्पूर्ण पापों का नाश कर देता है, महान संकटों को मिटा देता है, और सभी इच्छाओं को पूरा करने का क्षमता रखता है। इस व्रत के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पाप भी नष्ट हो जाते हैं। हजार अश्वमेघ और सौ वाजपेय यज्ञों के फल के बराबर लाभ मिलता है। इस व्रत को करनेवाला मनुष्य अपने पितृगण, मातृगण और पत्नी के परिवार के साथ मिलकर विष्णुलोक में स्थान पाता है। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। जिसने इस व्रत को ध्यानपूर्वक किया, वह मानों सभी व्रतों का अनुष्ठान कर चुका है।

त्रिस्पर्षा एकादशी का महत्व

त्रिस्पर्षा एकादशी के दिन व्रत रखने का महत्व अत्यंत विशेष है। यह ऐसा व्रत है जो जीवन के सबसे गंभीर पापों का भी नष्ट कर सकता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यहां तक कि जो व्यक्ति संत की हत्या का दोषी है, उसे भी इस व्रत के माध्यम से मोक्ष मिल सकता है। इसे करने से मिलने वाला पुण्य हजार अश्वमेध और सौ वाजपेयी यज्ञ करने के समान होता है।

जो कोई भी इस व्रत को पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ करता है, वह अपने पिता, माता, और पत्नी के वंश के साथ विष्णु लोक में स्थापित होता है। इस दिव्य व्रत के दौरान, आपको “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” – इस 12 अक्षरी मंत्र का भी जाप करना चाहिए। जो इसे करता है, वह जीवन में अनेक धार्मिक व्रतों के फल का उपभोग करता है।

Trisparsha Ekadashi Puja Vidhi

त्रिस्पर्षा एकादशी के दिन, सबसे पहली बात, सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करना चाहिए।

स्नान के बाद, स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र पहनने का महत्व है।

इसके बाद, प्रातः काल में ही भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की उत्कृष्ट पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

इस दिव्य दिन का एक और महत्वपूर्ण पहलू उपवास है। उपवास के दौरान, किसी भी परिवार के सदस्य को चावल और ज्यो का सेवन नहीं करना चाहिए।

अगर किसी को पूरा निर्जला उपवास करने में कठिनाई हो रही है, तो वह आंशिक उपवास भी कर सकता है।

जब व्रत का समापन हो, तो द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। अगर यह संभव नहीं है, तो किसी गरीब या निर्धन को दान भी किया जा सकता है।

इस प्रकार, त्रिस्पर्षा एकादशी का पालन करने से जीवन में अनुपम धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।

Leave a Comment

आरती : जय अम्बे गौरी