वरलक्ष्मी व्रत कथा – Varalakshmi Vrat Katha

Varalakshmi Vrat Katha

Varalakshmi Vrat Katha

पुराणों के अनुसार, बहुत समय पहले मगध राज्य में ‘कुण्डी’ नामक एक खूबसूरत नगर बसा हुआ था। यहाँ की सौंदर्य की वजह स्वर्ग से आयी दिव्य शक्तियां थीं। यह नगर मगध के मध्य भाग में स्थित था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी नामक ‘चारुमति’ अपने परिवार के साथ वास करती थी। चारुमति ने अपने जीवन में सबको खुश रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

माँ लक्ष्मी जी ने चारुमति की भक्ति और सेवा भाव को देखकर उसे रात के समय सपने में दर्शन दिए। माँ ने उसे “वरलक्ष्मी व्रत” के बारे में जानकारी दी और कहा कि इस व्रत के करने से वह जो चाहेगी, वो प्राप्त करेगी।

अगले दिन सुबह, चारुमति ने उनके समुदाय की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर माँ लक्ष्मी का विधिवत पूजा-अर्चना की। पूजा के बाद, सभी महिलाएं कलश की परिक्रमा करने लगीं। इसके बाद, उनके शरीर पर अचानक स्वर्ण के आभूषण आ गए।

उनके घर में भी स्वर्ण का अभिषेक हुआ और वहां नए-नए पशु, जैसे कि घोड़े, हाथी, और गायें, भी आ गए। इसके बाद, सभी महिलाएं चारुमति की प्रशंसा में लग गईं क्योंकि उन्होंने ही उन्हें इस व्रत के महत्वपूर्ण विधान के बारे में बताया था।

इस व्रत की कथा का ज्ञान, भगवान शिव जी ने माता पार्वती को दिया था। और इसे सुनने मात्र से भी माँ लक्ष्मी की अनुकम्पा मिलती है।

इस तरह, वरलक्ष्मी व्रत का महत्व और उसकी कथा ने कई जीवनों में रंग भरा है, और आज भी भरता आ रहा है।

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