Tulsidas Dohe With Meaning


Tulsidas Dohe With Meaning

चित्रकूट के घाट पे, भाई संतन की भीर ।
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करें रघूबीर ।।1 ।।

प्रसंग: कहा जाता है यह दोहा श्री हनुमान जी ने तोते का रूप धारण करके तुलसीदासजी को ध्यान दिलाया था कि वो जिस बालक का तिलक कर रहे हैं वो कोई और नही बल्कि प्रभु श्री राम और लक्ष्मण हैं ।

हिन्दी भावार्थ: चित्रकूट के घाट पे, कई संत आए हुए हैं और तुलसीदास चंदन घिसकर श्री रामचन्द्रजी के माथे पर तिलक लगा रहे हैं ।

जात हीन अब जन्म महि, मुक्त कीन्ह असि नार ।
महानंद मन सुख चहसि, ऐसे प्रभुहि विसार ।।2 ।।

प्रसंग: जब श्री रामजी माता सीता को खोकर, वन-वन भटक रहे थे, उसी समय वो शबरी के आश्रम पर गये । शबरी ने भगवान की खूब सेवा की और प्रभु चरणों में अपना शरीर छोड़ दिया । गोस्वामी तुलसीदासजी कह रहे हैं की शबरी को भी भगवान ने तार दिया.

हिन्दी भावार्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी कह रहे हैं की शबरी जैसी छोटी जाति और पापिनि समझी जाने वाली ( उस समय की समाज की विषमतायें , जबकि शबरी महान संत थीं) स्त्री को भी भगवान ने प्रबल भक्ति का नाता जानकार मुक्ति दे दिया । और ऐसे परम दयालु भगवान राम को छोड़ कर मन अपना सुख चाहत है, ये कैसे सम्भव है? अर्थात ये मन की मूर्खता है की भगवान को छोड़ कर किसी और चीज़ की इच्छा रखता है ।

राम प्रेम बिना दूबरो, राम प्रेम ही पीन ।
ऱघुबर कबहु ना कर हुंगे, तुलसी जो जल मीन ।।3 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी उस दिन की बाट देख रहे हैं कि जैसे मछली जल से ही प्राणवान है और बिना जल के प्राण छोड़ देती है, उसी प्रकार प्रभु कब आप मुझ पर ऐसी कृपा करेंगे कि राम का प्रेम ही हमारा बल हो और राम प्रेम के बिना हम दुबले हो जायें ।

नीच मीचु लै जाइ जो राम रजायसु पाइ ।
तौ तुलसी तेरो भलो न तु अनभलो अघाइ ।।4 ।।

हिन्दी भावार्थ : ऐ नीच! प्रभु श्रीराम के कार्यों को करते हुए तुझे मौत भी आ जाए तो इसमें भी तू अपना भला ही समझ क्योंकि भगवान राम की सेवकाई के बिना तो तेरा जीवन के बिना तो तेरा जीवन व्यर्थ है । यदि श्री रामजी के लिए प्राण भी चले जायें तो भी हमे अपनी हानि नही समझनी चाहिए ।

तुलसी दिन भाल साहू कह, भली चोर कह रात ।
निसि वासर को कह भलो, मानो राम विताती ।।5 ।।

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की साहूकार और सेठ लोग दिन को अच्छा बताते हैं और चोर रात्रि तो अच्छा बताते हैं (अपने अपने लाभ को सोचते हुए) लेकिन राम भक्तों के लिए तो रात और दिन एक सामना हैं । वो किसे अच्छा कहें किसे बुरा कहें क्योकि बिन राम के दिन और रात, कोई भला नही है ।

सधन सगुन सधरम सगन, सबल सुसाई महीप ।
तुलसी जे अभिमान बिनु ,ते तिभुवन के दीप ।।6 ।।

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कहते है कि जो पुरुष धनवान्,गुणवान्, धर्मात्मा सेवको से युक्त,बलवान् और सुयोग्य स्वामी तथा राजा होते हुए भी अभिमान रहित होते है, वे ही तीनो लोको मे नीओ लीक में उनका कीर्ति का प्रकाश होता है।

साहब ते सेवक बडो, जो निज धर्म सुजान ।
राम बान्धि उतरे उदधि , लाँघी गये हनुमान ।।7 ।।

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की जो सेवक अपनी पूरी निष्ठा के साथ कार्य करता है उसकी ख्याति मलिक से भी बड़ी होती है । जैसे प्रभु श्री राम को तो स्मुद्र पार करने के लिए पुल बंधना पड़ा था पर श्री हनुमानजी तो उसे कूद कर ही पार कर गये थे ।

प्रभु समीप गत सुजन जन, होत सुखद सुविचार ।
लवन जलधि, जीवन जलद, भरसक सुधा सुधार ।।8 ।।

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की जो लोग सज्जन होते हैं, उनके पास जाने से वो और भी भी सज्जनता से सुशोभित हो जाते हैं । जैसे बदल , समुद्र के खरे पानी से जन्म लेते हैं लेकिन फिर भी मीठा पानी बरसाते हैं ।

सुधा साधु सुर तरु सुमन, सुफल सुहावनी बात ।
तुलसी सीता पति भगती, सगुण सुमंगल सात ।।9 ।।

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की अमृत, साधु, कल्प वृक्ष, सुंदर पुष्प, सुंदर फल और सुहावनी बात और सीता पति श्री राम जी की भक्ति ये सात मंगलकारी हैं । ये हमेशा सुख देने वाले है और शुभ ही करते हैं ।

जो जो जेहिं जेहिं रस मगन तहँ सो मुदित मन मानि ।
रस गुण दोष विचार सो, रसक रीति पहचानी ।।10 ।।

हिन्दी भावार्थ: जो जो जेहिं जेहिं रस मगन तहँ सो मुदित मन मानि। रसगुन दोष बिचारिबो रसिक रिति पहिचानि। तुलसीदास कहते हैं कि जो-जो जिस-जिस रस में मग्न होता है, वह उसी में संतोष मानकर आनंदित होता है। लेकिन उसके गुण-दोषों को केवल रसिक जन ही पहचानते हैं।

Tulsidas Dohe With Meaning

तुलसी निज करतूति बिनु, मुकुत जात जब कोय ।
गया अज़ामिल लोक हरि, नाम सक्यो नही धोय ।।11 ।।

हिन्दी भावार्थ: जब कोई बिना अपने प्रयास के मुक्ति पा जाता हा तो उसकी उतनी बड़ाई नही होती । जैसे अज़ामिल वैकुंठ तो चला गया, लेकिन लोग उसका नाम एक पापी के रूप में जानते हैं ।

निज दूषन गुन राम के, समुझें तुलसीदास ।
होइ भलो कलिकाल हूँ, उभय लोक अनयास ।।12 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की जो मनुष्य अपने दोषो और श्री रामजी के गुणो को समझ लेता है , इस कलियुग में उसके इह लोक और परलोक दोनो ही सुधार जाते हैं ।

राम नाम नरकेसरी, कनक कशिपु कलिकाल ।
जापक जल प्रहलाद जिमी, पालिहि दलि सुरसाल ।।13 ।।

हिन्दी भावार्थ: श्री रामजी का नाम भगवान नरसिंह के सामन है और कलियुग , हिरण्यकश्यप राक्षस के समान । राम नाम भजने वाले भक्तजन प्रहलाद के समान हैं ।राम नाम कलियुग का हनन करके जापक और देवताओं की रक्षा करता है ।

अनुचित उचित विचार तजि, जे पालहि पितु बैन ।
ते भाजन सुख-सुजस के, बसहिं अमरपति ऐन ।।14 ।।

हिन्दी भावार्थ: जो संतति अपने पिता की बात का पालन उचित अनुचित का विचार छोड़कर ,करते हैं वो इस लोक में सुख और यश प्राप्त करते हैं और परलोक में स्वर्ग का सुख भोगते हैं ।

शठ सेवक की प्रीति रूचि , रखिहहि राम कृपाल ।
उपल किए जल जान जहि, सचिव सुमति कपि भालू ।।15 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की प्रभु श्री राम मुझ जैसे दुष्ट सेवक की भी प्रीति और रूचि को अवश्य रखेंगे जैसे उन्होने पत्थरों को भी जहाज़ बना दिया और बंदरों और भालुओं को भी मंत्री ।

राम निकाइ रावरी, है सबही को नीक ।
जो यह सांची है सदा, तो नीका तुलसीक ।।16 ।।

हिन्दी भावार्थ: हे रामजी आपके अच्छाई से सबका ही भला होता है, जो यह बात सत्य है, तो तुलसीदास का भी सदा कल्याण होगा । इसमे कोई संदेह नही है ।

स्वारथ सुख सपनेहु अगम, परमारथ ना प्रवेश ।
राम नाम सुमिरत मिटहि , तुलसी कठिन कलेश ।।17 ।।

हिन्दी भावार्थ: स्वार्थी व्यक्ति जिनके लिए सपने में भी सुख सुलभ नही है और, परमार्थ में मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में जिनका प्रवेश नही है । ऐसे लोगों को भी राम नाम जपने से कठिन से कठिन दुखों से भी छुटकारा मिल जात है । अर्थात, जिनका स्वार्थ नही सिद्ध होता और न ही परमार्थ सिद्ध होता है, ऐसे लोगों के भी इन दोनो लक्ष्यों की प्रति के लिए, रास्ते के क्लेश और दुख सिर्फ़ राम नाम जपने से मिट जाते हैं ।

प्रभु तरु तर कपि डार पर, पीकिये आप समान ।
तुलसी कहु ना राम से, साहिब शील निधान ।।18 ।।

हिन्दी भावार्थ: प्रभु श्री राम वृक्ष के नीच बैठने वाले हैं और बंदर वृक्ष की शाखाओं पर बैठने वाले लेकिन फिर भी प्रभु ने उनको अपने समान बना दिया । तुलसीदास जी कहते हैं की प्रभु श्री राम सा शीलवान और सज्जन स्वामी कहाँ मिलेगा । अर्थात कहीं नही ।

कहत कठिन समुझत कठिन, साधन कठिन विवेक ।
होई घुलाक्षर न्याय जो, पुनि प्रत्यूह अनेक ।।19 ।।

हिन्दी भावार्थ: ब्रह्मज्ञान मेंकठिन और साधने में भी कठिन है। यदि घुणाक्षर न्याय से (संयोगवश) कदाचित यह ज्ञान हो भी जाए, तो फिर (उसे बचाए रखने में) अनेकों विघ्न हैं

मुझे भरोसो एक बल, एक आस विश्वास ।
एक राम घनश्याम हित , चातक तुलसीदास ।।20 ।।

हिन्दी भावार्थ: प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि केवल एक ही भरोसा है, एक ही बल है, एक ही आशा है ।और एक ही विश्वास है। एक रामरूपी श्यामघन ( मेघ ) के लिए ही यह तुलसीदास चातक बना हुआ है ।

चातक तुलसी के मते, स्वातिहु पिए ना पानि ।
प्रेम त्रिशा बढ़ती भली, घटे घटे की आनी ।।21 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी के विचार से चातक को स्वाती नक्षत्र के मेघ का जल मिल गया है । लेकिन फिर भी वह जल नहीं पीना चाहता है, क्योकि पानी पी लेने से प्यास रूपी प्रेम की तीव्रता घटेगी और प्रेम की तीव्रता घटना का उसके मान की हानि है,क्योंकि चातक इसलिए ही जाना जाता है, कि उसे केवल स्वाती नक्षत्र के मेघ से अत्यधिक प्रेम है ।

रटत रटत रसना लटी, तृषा सूखिगे अंग ।
तुलसी चातक प्रेम का, नित नूतन रूचि रंग ।।22 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की चातक हमेशा स्वाती नक्षत्र के मेघ का रट लगाता रहता है, प्यास से सब अंग सूख गये हैं, फिर भी चातक का प्रेम कभी कम नही होता और वो नित्य नयी रूचि और प्रेम के साथ अपनी पुकार लगाता रहता है ।

चरण चोंच लोचन रंगो, चलो मराली चाल ।
क्षीर नीर बिच समय कब , पुनर धरत तेहि काल ।।23 ।।

हिन्दी भावार्थ: मनुष्य का असली चरित्र एक दिन सामने आ ही जाता है। बगुला चाहे अपने चरण ,चोंच और आँखों को हंस कि तरह रंग ले और हंस कि सी चाल भी चलने लगे ,परन्तु जिस समय दूध और जल को अलग-अलग करने का अवसर आता है ,उस समय उसकी पोल खुल जाती है। इसी प्रकार कोई बुरा मनुष्य यदि सज्ज्नों कि तरह अपनी वेषभूषा ,अपनी बोलचाल,अपनी चाल-ढाल बना भी ले तब भी समय आने पर उसकी वास्तविकता का पता चल ही जाता है।

होहु कहावत सब कहत , राम सहत उपहास ।
साहिब सीतानाथ सो, सेवक तुलसीदास ।।24 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की मेरे परम शक्तिमान श्री राम तो सर्वा समर्थ हैं और ये बड़े ही संकोच की बात है की उन जैसे स्वामी का तुलसीदास जैसा तुच्छ सेवक है । यहा तुलसीदास अपने आप को प्रभु श्री राम के समक्ष एकदम नगण्य करके देख रहे हैं । यह भक्ति की उच्चतम अवस्था है ।

जेहि प्रसंग दूषण लगे , तजिए ताको साथ ।
मदिरा मानत है जगत, दूध कलासी हाथ ।।25 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की जो वास्तु हानिप्रद है उसका तुरंत त्याग कर देना चाहिए । बुरा काम करनेवाले इन्सान के साथ खडा रहना या कहीं जाना नहीं चाहिए । शराब बेचनेवाले के हाथमें अगर दूध होगा तो भी लोग दूध को शराब ही समझेंगे ।

तुलसी या संसार में, तीन वस्तु है सार ।
सत्संग, हरी भजन एक , निस दिन पर उपकार ।।26 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की इस संसार में तीन चीज़ें ही मुख्य रूप से करने योग्य हैं । पहल सत्संग ( संतो और सज्जनो के के साथ प्रभु चर्चा), प्रभु का गुण गान और उनका हरदम स्मरण और नित्य परोपकार करना ।

लहहि ना फूटी कौड़िहू, की चाहे केहि काज ।
सो तुलसी महंगो कियो, राम ग़रीब निवाज़ ।।27 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास स्वयं के बारे में कहते हैं कि जिस तुलसीदास को पहले फूटी कौड़ी भी नही मिलती थी ।उसी तुलसी का महत्व और समाज में स्थान श्री रामजी की कृपा से बहुत बढ़ गया है ।

सदा न जे सुमिरत रहहिं मिलि न कहहिं प्रिय बैन ।
ते पै तिन्ह के जाहिं भर , जिन्ह के हिएँ न नैन ।।28 ।।

हिन्दी भावार्थ: जो कभी भी याद नही करते और मिलने पर प्रिय वचन भी नही बोलते, उनको पातिन्ह के के समान त्याज्य जानकर छोड़ देना चाहिए क्योंकि उनका हृदय प्रेम को नही समझ सकता ।

कामिही नारी पियारि जिमी, लोभिहि प्रिय जिमी दाम ।
तिमि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहू मोहि राम ।।29 ।।

हिन्दी भावार्थ: जिस प्रकार से कामातुर व्यक्ति को स्त्री प्रिय होती है और लालची व्यक्ति को धन, उसी प्रकार या उससे भी बढ़कर तुलसीदासजी तो प्रभु श्री राम जी से प्रेम हैं । उनका प्रभु से प्रेम संसार की हर वस्तु से बढ़कर है ।

घर कीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाई ।
तुलसी घर वन बीच ही, राम प्रेम पुरछाइ ।।30 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास जी इस पद में जीव के उस परम स्थाई घर की बात कर रहे हैं जिससे जीव आया है. ओर निर्वाण रूपी घर , घर में चिपक कर रहने से नही मिलेगा और उस घर का लक्ष्य छोड़ देने पर भी नही मिलेगा । उस निर्वाण रूपी घर को पाने का उपाय यही है कि घर और वन के बीच में राम प्रेम की पूरच्छाई बना ली जाय और उसी का सेवन किया जाय ।अर्थात राम प्रेम में निरंतर डूबे रहने पर अवश्य ही निर्वाण रूपी घर मिलेगा ।

श्रोता, वक्ता, ज्ञान निधि, कथा राम के ग़ूढ ।
किमि समझौं मैं जीव जड़, कलिमल ग्रसित विमूढ़ ।।31 ।।

हिन्दी भावार्थ: रामायण को सुनने वाले , और कथा सुनाने वाले ज्ञान के सागर होते हैं । उनको मैं कलियुग के बुराइयों से ग्रसित मनुष्य भला किस प्रकार समझ सकता हूँ ।

राम कथा मंदाकिनी, चित्रकूट चितचारू ।
तुलसी सुभग सनेह वन, सिय रघुबीर विहारू ।।32 ।।

हिन्दी भावार्थ:श्री राम जी की कथा पवित्र मंदाकिनी नदी है । निर्मल चित्त (मन) ही चित्रकूट है और सुंदर स्नेह ही वन है जिसमे श्री रामजी और सीता माता विहार करते हैं ।

सकल कामना हीन वे, राम भगति रस लीन ।
सदा चरण यो रत रहे, तुलसी ज्यों जल मीन ।।33 ।।

हिन्दी भावार्थ: जो लोग श्री रामजी की भक्ति में लीन रहते हैं उनकी सारी भौतिक इच्छायें समाप्त हो जाती हैं । वो श्री राम जी के चरणो केध्यान में इस तरह डूबे रहते हैं, जैसे जल में मछली. श्री राम जी के चरणो के ध्यान को छोड़ कर क्षण भर भी रहना उन्हे स्वीकार नही है ।

रामचरित राकेस कर, सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित, हित बिसेषि बड़ लाहु ।।34 ।।

हिन्दी भावार्थ:: श्री रामजी का चरित्र पूर्णिमा के चाँद के समान सबको सुख और प्रसन्नता प्रदान करने वाला है । लेकिन सज्जन रूपी कमाल और चकोर के मन को विशेष प्रसन्नता देने वाली है ।

सेए सीताराम नही, भजे ना शंकर गौरी ।
जनम गँवायो व्यर्थ ही, अरत पराई पौरी ।।35 ।।

हिन्दी भावार्थ: जिसने सीता राम की सेवा(पूजा, भक्ति , भजन ) नही की या शंकर पार्वती का भजन नही किया, उन्होंने किसी दूसरे द्वार पर माथा टेककर इस जन्म को व्यर्थ ही गंवा दिया ।

मज्जहिं सज्जन वृंद बहु , पावन सरजू नीर ।
जपहि राम धरि ध्यान उर, सुंदर श्याम शरीर ।।36 ।।

हिन्दी भावार्थ:तुलसीदासजी कहते हैं की पवित्र सरयू नदी के किनारे भले लोगों का बहुत बड़ा समूह स्नान करताहैं. वो श्री राम जी के सुंदर श्याम रूप का का हृदय में ध्यान करते हैं ।

रामनाम का अंक है, सब साधन है सून ।
अंक गये कुछ हाथ नही, अंक रहे दस गून ।।37 ।।

हिन्दी भावार्थ: श्री राम जी के नाम बिना सारे साधन (जप, ताप, वैराग्य आदि) शून्य के समान हैं । श्री राम जी का नाम आँक के समान है । जैसे अंक शून्य के पहले लगा देने पर दस गुना हो जताता है, उसी प्रकार, जप, तप , वैराग्य आदि दस गुना फल देंगे, अगर श्री रामजी का नाम साथ में लिया जाय तो ।

तुलसी देव देवालय को, लागे लाख करोर ।
काट अभागी हिय भरो, महिमा भई की थोर ।।38 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की देवताओं के मंदिर बनवाने में लाखों करोड़ों रुपये लगते हैं उसमे अगर कौवे के बीट कर देने से उसकी महत्व कहीं कम नही होता ।

समन अमित उतपात सब, भरत चरित जप जाग ।
कलि अघ फल अवगुण कथन, ते जल मल बग काग ।।39 ।।

हिन्दी भावार्थ: संपूर्ण अनगिनत उत्पातों को शांत करने वाला भरतजी का चरित्र नदी तट पर किया जाने वाला जपयज्ञ है। कलियुग के पापों और दुष्टों के अवगुणों के जो वर्णन हैं, वे ही इस नदी के जल का कीचड़ और बगुले-कौए हैं ।

प्रभु सनमुख भए नीच नर निपट होत विकराल ।
रबि रुख लखि दरपन फटिक, उगिलत ज्वालाजाल ।।40 ।।

हिन्दी भावार्थ: जिस प्रकार सूर्य का रुख अपनी ओर देखकर दर्पण और स्फटिक आग की लपटें उगलने लगते हैं. प्रभु के सामने आते ही नीच व्यक्ति और आग बबूला हो जाते हैं ।

मो सम दीन ना दीनहित, तुम समान रघुबीर ।
अस विचारि रघुबंश मणि , हरहू विषम भवभीर ।।41 ।।

हिन्दी भावार्थ: मेरे जैसा कोई ग़रीब दुखी नही प्रभु और आप सा कोई ग़रीबों का भला चाहने वाला नही हे भगवान! यही जान कर हे भगवान मेरे दुख हर लीजिए दीनानाथ ।

तुलसी जानो सुनो समुझ , कृपा सिंधु रघुनाथ ।
महँगे मनि कंचन किए, सौघो जग जल नाज ।।42 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि उन्होने सुनकर और स्वयं से समझ कर ये जान लिया है की श्री रघुनाथ कृपा सिंधु हैं । उन्होने सहज कृपा करके ही मणि और सोने को महँगा किया और जल अन्न को सहज और सुलभ बनाया है ।

ब्रह्म निरूपण धरम विधि, बरनहि तत्व विभाग ।
कहहि भगती भगवंत के, संजुत ज्ञान विराग ।।43 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी प्रयाग तीर्थ के बारे में कहते हैं की वहाँ ऋषि मुनि प्रयाग संगम में स्नान करने के बाद भारद्वाज ऋषि के आश्रम में जुटते हैं और वहाँ ब्रह्म का निरूपण, धर्म का विधान और तत्वों के विभाग का वर्णन करते हैं तथा ज्ञान वैराग्य से युक्त होकर भगवान की भक्ति का वर्णन करते हैं ।

वचन वेश के सो बने , सो बिगरै परिणाम ।
तुलसी मनपे जो बने, बनी बनाई राम ।।44 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की छल- कपट भारी वेश और बातों से जो बात बनती है ,वही बात खुल जाने पर बहुत जल्दी बिगड़ भी जाती है । लेकिन जो कार्य स्वाभाविक रूप से बनते है, वो श्री राम जी की कृपा से बनते ही चले जाता है ।

मातु-पिता ,गुरु,स्वामी सिख , सिर धरि करहि सुभाय ।
ल़हेऊ लाभ तही जनम कर, ना करू जनम जग जाए ।।45 ।।

हिन्दी भावार्थ:जो लोग माता पिता गुरु और स्वामी की शिक्षा स्वाभाविक ही सिर नवाकर मान लेते हैं, उन्ही का जीवन सफल है, नही तो जन्म व्यर्थ ही गया ।

विरुधि परखिए सुजन जन, राखि परखिऐ मंद ।
बड़वानल सोषत उदधि, हरष बढ़ावत चंद ।।46 ।।

हिन्दी भावार्थ: सज्जन जन अपने व्यवहार से तुरंत ही पहचाने जाते हैं और तुरंत ही लाभ प्रदान करते हैं । लेकिन दुष्टजन अपना प्रभाव देर में दिखाते है । जैसे बड़वानल तो समुद्र का धीरे-धीरे कुछ जल सुखाता है, लेकिन चंद्रमा तुरंत ही समुद्र को बढ़ा देता है ।

राम काम तरु परहित , सेवत काल आरू ठूंठ ।
स्वारथ परमारथ चहत, सकल मनोरथ झूठ ।।47 ।।

हिन्दी भावार्थ: जो व्यक्ति प्रभु राम रूपी कल्पवृक्ष से विमुख होकर ढूंठ वृक्ष रूपी कलियुग का गुणगान करता है अर्थात् पाप कर्म करता हुआ उससे स्वार्थ व मोक्ष की इच्छा रखता है, उसकी कामना कभी पूरी नहीं होती। उसे न तो मोक्ष मिलता है और ना ही संसारिक सुख ।

पुण्य,प्रीति,पति, प्रस्पतिउं , परमारथ पथ पाँच ।
लहहि सुजन परिहरि खलु , सुनहु सिखवान सांच ।।48 ।।

हिन्दी भावार्थ: पुण्य, प्रेम, प्रतिष्ठा, प्राप्ति(लौकिक) और परमार्थ के पाठ को सज्जन लोग ग्रहण करते है लेकिन दुष्ट लोग इन पाँचों को ही त्याग देते हैं ।इस सच्ची सीख को सब सुन और समझ लें ।

शरणागत कहूँ जे तजहि , निज अनहित अनुमान ।
ते नर पामार पापमय, तिनहि विलोकत हानि ।।49 ।।

हिन्दी भावार्थ: जो अपने शरण में आए हुए व्यक्ति को अपनी हानि होने का अनुमान करके छोड़ देता है । वो लोग महान पाप के भागी होते हैं । उनका मुख देखने से भी पाप लगता है ।

तुलसी अद्भुत देवता ,आसा देवी नाम ।
सेएँ सोक समर्पई बिमुख भएँ अभिराम ।।50 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास कहते हैं कि ‘आशा’ एक ऐसी अद्भुत देवी है जिसकी सेवा करने से शोक और इससे विमुख होने पर सुख प्राप्त होता है।आशायें ही मनुष्य को तरह तरह के बंधनो में जकड़े रहती हैं इसलिए , निस्पृह होकर हरिनाम का जप करना चाहिए ।

अंक अगुन आखर सगुन,समुझिए उभय प्रकार ।
खेाएँ राखें आपु भल, तुलसी चारू बिचार ।।51 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि निर्गुण ब्रह्म ( १, २, ३ ) अंक के समान है और सगुण भगवान् अक्षर के समान ।तुलसी कहते हैं कि ब्रहा अंक के समान गुढार्थ और सगुण ब्रह्म ईश्वर अक्षरों के समान सरलार्थ बताने वाला है , दोनों ही एक ब्रह्म के दो रूप है ।अंक जो अक्षर के रूप में लिख देने पर किसी प्रकार का संशय नही रह जाता ।..तुलसीदासजी के अनुसार निर्गुण की अपेक्षा सगुण अधिक प्रामाणिक है ।

सीता लखन समेत प्रभु, सोहत तुलसीदास ।
हरषत सुर बरसत सुमन, सगुन सुमंगल वास ।।52 ।।

हिन्दी भावार्थ:श्री राम चंद्रजी माता सीता और लक्ष्मण जी सहित शोभायमान हो रहे हैं. उनको देखकर देवता हर्षित हो कर फूल बरसा रहे हैं । जहाँ प्रभु हैं वहाँ सभी सुमंगल भी बसते हैं ।

चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिय लखन समेत ।
राम नाम जप जापकहि, तुलसी अभिमत देत ।।53 ।।

हिन्दी भावार्थ: चित्रकूट ही वह पावन धाम है जहाँ आज भी श्री राम , सीता और लक्ष्मण के साथ सदा सर्वदा मौजूद रह कर अपने भक्तों का कल्याण करते हैं ।तुलसीदास कहते है की वह रामप्रभु रामनाम का जप करनेवाले को इच्छित फल देते है ।

पय आहार खाई जपु, राम नाम षट मास ।
सकल सुमंगल सिद्ध सब, करतल तुलसीदास ।।54 ।।

हिन्दी भावार्थ: सिर्फ़ दूध पीकर श्री रामजी का नाम छह (6) महीने जपने से सभी सुमंगल और सिद्धियाँ हस्तगत हो जाती हैं । ऐसा श्री राम जी के नाम का प्रताप है ।

रामनाम अवलंब बिनु , परमारथ की आस ।
बरसत वारिद बूँद गहि , चाहत चढ़न अकाश ।।55 ।।

हिन्दी भावार्थ:श्री राम जी के नाम के आसरे के बिना यदि कोई परलोक में कल्याण चाहता है तो यह उसी प्रकार से व्यर्थ है जैसे कोई बारिश के पानी को पकड़ के आकाश में चढ़ना चाहे ।

बिगरी जनम अनेक की, सुधरै अबही आजू ।
होहि राम को नाम जप, तुलसी तजिको समाज ।।56 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसी दासजी कहते हैं की जन्म -जन्म की बिगड़ी को सुधारने का समय अब आ गया है , सब समाज की चिंता छोड़ करके अब श्री रामजी का ही नाम जपना है ।

संत सरल चित जगत हित, जानी सुभाउ सनेहु ।
बाल विनय सुन करि कृपा, राम चरण रति देहु ।।57 ।।

हिन्दी भावार्थ: संतों का सरल हृदय होता है और उनका स्वभाव स्नेहपूर्ण होता है । उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानकर मैं प्रार्थना करता हूँ कि मुझ बालक की विनती सुन कृपा करके श्रीरामजी के चरणों में प्रीति दें ।

राम नाम पर नाम तें, प्रीति प्रतीति भरोस ।
सो तुलसी सुमिरत सकल, सगुन सुमंगल कोस ।।58 ।।

हिन्दी भावार्थ: प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि जो रामनाम के अधीन है और रामनाम में ही जिसका प्रेम और विश्वास है, रामनाम का स्मरण करते ही वह सभी सद्गुणों और श्रेष्ठ मंगलों का खजाना बन जाता है ।

जथा सुअंजन अंज दृग, साधक सिद्ध सुजान ।
कौतुक देखत शैल वन, भूतल भूरि निधान ।।59 ।।

हिन्दी भावार्थ:जैसे सिद्ध काजल लगा करके के सिद्ध योगी दूर की चीज़ें भी देख लेते हैं । वैसे ही प्रभु भूमि, जंगल और पर्वत में होने वाले सभी कर्मो को देख लेते हैं ।

रसना सांपिन वदन बिल, जे न जपहि हरिनाम ।
तुलसी प्रेम ना रोम सो , ताही विधाता वाम ।।60 ।।

हिन्दी भावार्थ:जो लोग हरिनाम को नही जपते उनकी जीभ साँप के समान और मुख सर्प के बिल के समान है । जिसे श्री राम से प्रेम नही उससे तो विधाता ही रुष्ट हैं ।

रे मन सब सो नीरस है, सरस राम सो होहि ।
भलो सिखवान देत हैं, निस दिन तुलसी तोहि ।।61 ।।

हिन्दी भावार्थ:यह सब संसार नीरस और तत्वहीन है और सिर्फ़ राम के प्रताप से ही सब सरस होता है । यह हित करने वाली सीख तुलसी सदा सबसे कहते हैं ।

हरे चरहि तापहि बरे, क्षरे पसारहि हाथ ।
तुलसी स्वारथ मीत सब, परमारथ रघुनाथ ।।62 ।।

हिन्दी भावार्थ:जब सब अच्छा होता है तो सब साथ आ जाते हैं, सूखे के मौसम में(क्षति होने पर ) सब दूर चले जाते हैं और अपना सब क्षीण हो जाने पर लोग माँगते है । इस प्रकार सब स्वार्थवश ही नाता रखते हैं । परमार्थ सुख देने वाले सिर्फ़ श्री रामजी ही हैं ।

भाग छोट अभिलाष बड़ , करौ एक विश्वास ।
हे हहि सुख सुनी सुजन सब, खल करिहहि उपहास ।।63 ।।

हिन्दी भावार्थ:तुलसीदासजी रामचरितमानस लिखना प्रारंभ करते हुए ये बात कहते हैं की , मेरा छोत टा भाग्य है लेकिन महत्वाकांक्षा बहुत बड़ी है (श्री रामजी का चरित्रा लिख ने की) । लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है कि सज्जन लोग मेरे इस प्रयास से खुश होंगे और दुष्ट लोग खिल्ली उड़ाएंगे ।

स्वारथ सीता राम सो, परमारथ सिया राम ।
तुलसी तेरो दूसरे, द्वार कहाँ कहूँ काम ।।64 ।।

हिन्दी भावार्थ:तुलसीदासजी कहते हैं की मेरे स्वार्थ और परमार्थ दोनो ही सीता राम से है, और किसके के द्वार पर मेरा क्या काम?अर्थात मेरे तो सब कुछ सीता राम ही हैं ।

गृह भेषज जल पवन पट, पाई कुजोग सुजोग ।
होहि कुवस्तु सुवस्तु जग, लखई सुलक्षण लोग ।।65 ।।

हिन्दी भावार्थ: घर , औषधि, जल, पवन, और वस्त्र ये जिसके संपर्क में आते हैं उसी के प्रभाव से अच्छे या बुरे समझे जाते हैं । जल घड़े में रहने से पेय हो जात है और धरती पे बह जाने से त्याज्य । पवन फूलों के संपर्क में आने से सुगंधित और स्थान भेद से अस्वास्थ्यकर । वस्त्र विवाहित जोड़े के उपर खूब प्रशंसा पाता है और शव के उपर त्याज्य है ।

स्वारथ परमारथ सकल, सुलभ एक ही ओर ।
द्वार दूसरे दीन का, उचित ना तुलसी तोर ।।66 ।।

हिन्दी भावार्थ:तुलसीदासजी जी स्वयं के लिए कहते हैं की मेरा स्वार्थ और परमार्थ सब एक ही ओर(श्री रामजी से) से सुलभ है । किसी और से आशा करना हे तुलसी तुझे उचित नही है ।

देव,दनुज,नर,नाग,खग, प्रेत,पितर, गंधर्व ।
बंदौ किन्नर रजनिचर , कृपा करहू अब सर्व ।।67 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी रामचरित मानस की रचना प्रारंभ करते हुए सबकी वंदना करते है और कहते हैं कि देवता, दानव, मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितृ गण गंधर्व, किन्नर और निशचार सबको वंदन है , सब मुझपर कृपा करें की मैं यह रामचरितमानस यह कठिन कार्य सफलतापूर्वक संपन्न कर सकूँ ।

राम वाम दिशि जानकी, लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्याणमय , सुर तरु तुलसी तोर ।।68 ।।

हिन्दी भावार्थ: श्री रामजी के बाईं तरफ माता सीता और दाहिनी तरफ लक्ष्मण जी खड़े है. इस प्रकार से ध्यान करना सभी कल्याण को देने वाले कल्प वृक्ष के समान है ।

जड़, चेतन, जग,जीव,जत, सकल राम मय जान ।
वंदौ सबके पद कमल, सदा जोरि जुग पानी ।।69 ।।

हिन्दी भावार्थ: जो जड़ हैं , गति हीन हैं, और जीवित हैं, संसार में जीतने भी जीव जन्तु निष्प्राण पदार्थ हैं , सभी को ऱाममय समझो । मैं हाथ जोड़कर इन सबके चरण कमल की वंदना करता हूँ क्योंकि सबमे श्री राम ही हैं ।

सम प्रकाश तम पाख दुहुन, नाम भेद विधि कीन्ह ।
शशि शोषक पोषक समुझि , जग जस अपजस दीन्ह ।।70 ।।

हिन्दी भावार्थ: चंद्रमा की घटती बढ़ती कला के अनुसार लोगों ने शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का विभेद कर दिया और एक को पोषण करने वाला और दूसरे को हानि करने वाला समझ कर चंद्रमा को यश और अपयश का भागी होना पड़ता है ।

मान राखिबो माँगिबो, पिय सो नित नव नेह ।
तुलसी तीनो तब फबें, जो चातक मत लेह ।।71 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास कहते हैं कि पहले आत्मसम्मान की रक्षा, फिर माँगना और फिर प्रियतम से प्रेम को नित्य बढ़ाने की प्रार्थना करना—ये तीनों बातें तभी फबती हैं(जँचती हैं) जब चातक की तरह आपका प्रभु के प्रति प्रेम एकनिष्ठ हो ।

प्रिय लागहि अति सबहि मम , भलित राम जस संग ।
दारू विचारू की करई कोउ , बन्दिअ मलय प्रसंग ।।72 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास कहते हैं कि श्रीरामजी के यश के संग से मेरी कविता सभी को अत्यन्त प्रिय लगेगी, जैसे मलय पर्वत के संग से काष्टमात्र चन्दन बनकर वन्दनीय हो जाता है, फिर क्या कोई काठ का विचार करता है ।

बिनु सत्संग ना हरि कथा, तेहि बिनु मोह ना भाग ।
मोह गये बिनु राम पद, होई ना दृढ़ अनुराग ।।73 ।।

हिन्दी भावार्थ: बिना सत्संग किए और हरी कथा सुने मोह नही जाता और बिना मोह गये श्री रामजी के चरनो में दृढ़ प्रीति नही होती ।

जुगुती बेधि पुनि टोहि अही, रामचरित बरताग ।
पहिरहि सज्जन विमल उर,शोभा अति अनुराग ।।74 ।।

हिन्दी भावार्थ: कवित्व का सौंदर्य रामचरित रूपी तागे में विवेक से बीन्ध कर प्रभु भक्ति की माला बनती है । ‘सजन अपने विमल उर पर इसको ( मणिमाला को ) पहनते हैं और अनुराग की शोभा उत्पन्न होती है

माली, भानु, किसान सम, नीति निपुण नरपाल ।
प्रजा भाग बस होहिंगे, कबहु कबहु कलिकाल ।।75 ।।

हिन्दी भावार्थ: जैसे माली अपने सब पुष्पों का ख्याल रखता है, सूर्य अपना प्रकाश सबको बराबर बाँटता है, और किसान जैसे अपनी खेती का श्रम पूर्वक सुख त्यागकर ध्यान रखता है ऐसे नीति निपुण राजा कलियुग में कभी कभार ही होंगे ।

श्याम सुरभि पय विशद अति , गुणद करहि सब पान ।
गिरा ग्राम्य सिय राम जस , गावहि सुनहि सुजान ।।76 ।।

हिन्दी भावार्थ: श्याम गौ काली होने पर भी उसका दूध बहुत गुणकारी होता है, ऐसा मानकर सब दूध पीते हैं । उसी प्रकार श्र राम चरितमानस की भाषा गवाँ रु होने पर भी श्री राम नाम के रस से युक्त होने के कारण सब इसे बड़े चाव से सुनते हैं ।

बरसत हरषत लोग सब, करषत लखे ना कोय ।
तुलसी प्रजा सुभाग ते, भूप भानु सो होई ।।77 ।।

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि जब सूर्य पानी को सोखता है तो किसी को जान नही पड़ता पर जब यही पानी वर्षा होकर बरसता है तो सब लोग सुखी हो जाते हैं । इसी प्रकार राजा को ऐसा होना चाहिए कि कर लेते समय किसी को भार ना लगे , लेकिन जब वह प्रजा को इसका लाभ दे तो सब प्रसन्न हो ज्जायें । ऐसे सूर्य के समान , बड़े भाग्य से प्रजा को मिलता है ।


Tulsi Ke Dohe in English

Chitrakoot Ke Ghat Pe,
Bhai Santan Ki Bheer ।
Tulasidas Chandan Ghise,
Tilak Karein Raghubeer ।।1 ।।

Jat Hin Ab Janm Mahi,
Mukt Keenh Asi Naar ।
Mahanand Man Shukh Chahasi,
Aise Prabhuhi Visar ।।2 ।।

Ram Prem Bina Doobaro,
Ram Prem Hi Peen ।
Raghubar Kabahu Na Kar Hunge,
Tulasi Jo Jal Meen ।।3 ।।

Meench Meechu Le Jaaye Jo,
Ram Rajayasu Paay ।
Ta Tulasi Tero Bhalo,
Natu An Bhalo Aghay ।।4 ।।

Tulasi Din Bhal Sahu Kah,
Bhali Chor Kah Raaat ।
Nis Vasar Ko Kah Bhalo,
Mano Ram Viatati ।।5 ।।

Sadhan Sagun Sagharan Sagun,
Sabal Subhayi Maheep ।
Tulasi Je Abhiman Bino,
Te Tribhuvan Ke Dweep ।।6 ।।

Sahab Te Sevak Bado,
Jo Nij Dharm Sujaan ।
Ram Baandhi Utare Udadhi,
Langhi Gaye Hanuman ।।7 ।।

Prabhu Sameep Gat Sujan Jan,
Hot Sukhad Suvichar ।
Lavan Jaladhi, Jeevan Jalad,
Bharasak Sudha Sudhar ।।8 ।।

Sudha Sadhu Sur Taru Suman,
Sufal Suhavani Baat ।
Tulasi Sitapati Bhagati,
Sagun Sumangal Saat ।।9 ।।

Jo Jo Chehi Ras Magan,
Tah So Mudit Man Maani ।
Ras Gun Dosh Vichair So,
Rasak Reeti Pahachani ।।10 ।।

Tulasi Nij Kartooti Binu,
Mukut Jaat Jab Koy ।
Gaya Ajamil Lok Hari,
Naam Sakyo Nahi Dhoy ।।11 ।।

Nij Dooshan Gun Ram Ke ,
Samujhe Tulasidas ।
Hoi Bhali Kalikalhu,
Ubhayalok Aniyas ।।12 ।।

Ram Naam Narkesari,
Kanak Kashipu Kalikal ।
Jaapak Jal Prahalad Jimi,
Paalihi Dali Sursal ।।13 ।।

Anuchit Uchit Vikaru Taji ,
Je Paalahi Pitu Bain ।
Te Bhojan Sukh Sujas Ke,
Basahi Amarpati Yen ।।14 ।।

Shath Sevak Ki Preeti Ruchi ,
Rakhihahi Ram Kripal ।
Upal Kiye Jal Jaan Jahi,
Sachiv Sumati Kapi Bhalu ।।15 ।।

Ram Nikaai Raavari,
Hai Sabahi Ko Neek ।
Jo Yah Saanchi Hai Sada,
To Neeka Tulaseek ।।16 ।।

Swarath Sukh Sapanehu Agam,
Paramarath Na Pravesh ।
Ram Naam Sumart Mitahi,
Tulasi Kathin Kalesh ।।17 ।।

Prabhu Taru Tar Kapi Daar Par,
Peekiye Aap Samaan ।
Tulasi Kahu Na Ram Se,
Sahab Sheel Nibhan ।।18 ।।

Kahat Kathin Samujhat Kathin,
Saadhan Kathin Vivek ।
Hoi Ghulakshar Nyay Jo,
Puni Pratyuh Anek ।।19 ।।

Mujhe Bharoso Ek Bal,
Ek Aas Vishwas ।
Ek Ram Ghanshyam Hit,
Chatak Tulasidas ।।20 ।।

Chatak Tulasi Ke Mate,
Swaatihu Piye Na Paani ।
Prem Trisha Badhati Bhali,
Ghatai Ghatai Ki Aani ।।21 ।।

Ratat Ratat Rasana Lage,
Trishna Sookh Ke Ang ।
Tulasi Chatak Prem Ka,
Nit Nootan Ruchi Rang ।।22 ।।

Charan Chonch Lochan Rango,
Chalo Maraali Chal ।
Ksheer Neer Bich Samay Kab ,
Punar Dharat Tehi Kaal ।।23 ।।

Hohun Kahaawat Sab Kahat,
Ram Sahat Uphaas ।
Sahib Sitanaath So,
Sevak Tulasidas ।।24 ।।

Jehi Prasang Dooshan Lage ,
Tajiye Taako Saath ।
Madira Manat Hai Jagat,
Doodh Kalaasi Haath ।।25 ।।

Tulasi Ya Sansaar Mein,
Teen Vastu Hai Saar ।
Satsang, Hari Bhajan Ek ,
Nish Din Par Upkar ।।26 ।।

Lahahi Na Footi Kaudihu,
Ki Chahe Kehi Kaaj ।
So Tulasi Mahango Kiyo,
Ram Garibaniwaj ।।27 ।।

Sonaje Sumirani Karahi,
Mili Na Kahahe Priy Vain ।
Te Paitinh Ki Jahi Bhar ,
Jinhahi Hiye Nahi Nain ।।28 ।।

Kaamihi Nari Piyari Jimi,
Lobhihi Priy Jimi Daam ।
Timi Raghunaath Nirantar,
Priy Laagahu Mohi Ram ।।29 ।।

Dharati Ne Ghar Jaat Hai,
Ghar Chhode Ghar Jaai ।
Tulasi Ghar Van Beech Hi,
Ram Prem Purchhaain ।।30 ।।

Shrota, Vakta, Gyan Nidhi,
Katha Raam Ke Goodh ।
Kimi Samajhaun Main Jeev Jad,
Kalimal Grasit Vimoodh ।।31 ।।

Ram Katha Mandakini,
Chitrakoot Chitachaaru ।
Tulasi Subhag Saneh Van,
Siy Raghbeer Vihaaru ।।32 ।।

Sakal Kamana Heen Ve,
Ram Bhagati Ras Leen ।
Sada Charan Yo Rat Rahe,
Tulasi Jyon Jal Meen ।।33 ।।

Ram Charit Rakesh Kar,
Sarsi Sukhad Sab Kaahu ।
Sajjan Kum Bich Kor Chit,
Hit Visheshi Badh Laahu ।।34 ।।

Seye Sitaram Nahi,
Bhaje Na Shankar Gauri ।
Janam Gavaanyo Vyarth Hi,
Arath Paraayi Pauri ।।35 ।।

Majjahin Sajjan Vrind Bahu,
Pavan Saraju Neer ।
Japahi Ram Dhari Dhyan Ur,
Sundar Shyam Shareer ।।36 ।।

Ramnaam Ka Ank Hai,
Sab Sadhan Hai Soon ।
Ank Gaye Kuchh Haath Nahi,
Ank Rahe Das Goon ।।37 ।।

Tulasi Dev Devalay Ko,
Laage Lakh Karor ।
Kaat Abhagi Hiy Bharo,
Mahima Bhai Ki Thor ।।38 ।।

Shaman Amit Utpat Sab,
Bharat Charit Jap Jaag ।
Kali Agh Fal Avgun Kathan,
Te Jal Mal Bag Kaag ।।39 ।।

Prabhu Sanmukh Bhaye Neech Nar,
Nipat Hot Vikaraal ।
Raav Rukh Lakhi Darshan Fatit,
Ugalit Jwala Jaal ।।40 ।।

Mosam Deen Na Deen Hit,
Tum Samaan Raghubir ।
As Bichari Rahubansamani,
Harahu Visham Bhavbheer ।।41 ।।

Tulasi Jaano Suno Samujh,
Kripa Sindhu Raghunath ।
Mahangi Mani Kanchan Kiye,
Seedhe Jag Jagnaath ।।42 ।।

Brahm Nirupan Dharam Vidhi,
Baranahi Tatv Vibhag ।
Kahahi Bhagati Bhgawant Ke,
Sanjut Gyan Virag ।।43 ।।

Vachan Vesh Ke So Bane ,
So Bigarai Parinaam ।
Tulasi Manape Jo Bane,
Bani Banayi Raam ।।44 ।।

Matu-pita,Guru,Swami Seekh,
Sir Dhari Karahi Subhay ।
Laheu Labh Tehi Janam Kar,
Na Karu Janam Jag Jaaye ।।45 ।।

Viruchi Prakhiye Sujan Jan,
Raakh Parakhiye Mand ।
Badawanal Shoshat Udadhi,
Harat Badhawat Chand ।।46 ।।

Ram Kaam Taru Par Hit,
Sevat Kaal Aru Thoonth ।
Swarath Paramarath Chahat,
Sakal Manorath Jhooth ।।47 ।।

Punya,Preeti,Pati, Praspatiyun,
Paramarath Path Paanch ।
Lahahi Sujan Parahari Khalu ,
Sunahu Sikhavan Saanch ।।48 ।।

Sharanagat Kahun Je Tajahi,
Nij Anhit Anumaan ।
Te Nar Pamar Papmay,
Tinahi Vilokat Hani ।।49 ।।

Tulasi Adbhut Devata,
Asha Devananam ।
Seyen Shok Samarpai,
Vimukh Bhaye Harinaam ।।50 ।।

Ank Agun Aakhar Sagun,
Samujhiye Ubhya Praakar ।
Khaye Raakhe Aap Khal,
Tulasi Chaaru Bigar ।।51 ।।

Sita Lakhan Samet Prabhu,
Sohat Tulasidas ।
Harashat Sur Barasat Suman,
Sagun Sumangal Vaas ।।52 ।।

Chitrakoot Sab Din Basat,
Prabhu Siy Lakhan Samet ।
Ram Naam Jap Jaap Kahiy,
Tulasi Aamit Dev ।।53 ।।

Pay Ahar Khaai Japu,
Ram Naam Shat Mas ।
Sakal Sumngal Siddh Sab,
Karatan Tulasidas ।।54 ।।

Ramnaam Avalamb Binu,
Paramarath Ki Aaas ।
Barashat Varid Boond Gahi,
Chahata Chadhan Akash ।।55 ।।

Bigari Janam Anek Ki,
Sudharahei Abahi Aaju ।
Hohi Ram Ko Naam Jap,
Tulasi Tajiko Samaj ।।56 ।।

Sant Sharanchit Jagat Hit,
Jaani Subhau Sanehu ।
Baal Vinay Sun Kari Kripa,
Ram Charan Rati Dehu ।।57 ।।

Ram Naam Par Nam Te,
Preet Preetam Bharos ।
So Tulasi Suvarat Sakal,
Sagun Sumngal Kosh ।।58 ।।

Jatha Suanjan Anj Drig,
Sadhak Siddh Sujan ।
Kautuk Dekhat Shail Van,
Bhutal Bhuri Nidhan ।।59 ।।

Rasana Saanpin Vadan Bil,
Je Japahin Harinaam ।
Tulasi Prem Na Rom So ,
Taahi Vidhata Vaam ।।60 ।।

Re Man Sab So Niras Hai,
Saras Ram O Hohi ।
Bhalo Sikhavan Det Hain,
Nis Din Tulasi Tohi ।।61 ।।

Hare Charahin Tapahin Bare,
Kshare Pasarahin Haath ।
Tulasi Swarath Meet Sab,
Paramarath Raghunath ।।62 ।।

Bhag Chhot Abhilash Bad,
Karau Ek Vishwas ।
Hehahi Sukh Suni Sujan Sab,
Khal Karihahi Upahas ।।63 ।।

Swarath Sitaram So,
Paramarath Siyaram ।
Tulasi Tero Doosare,
Dwar Kahan Kahun Kaam ।।64 ।।

Grah Bheshaj Jal Pawan Pat,
Paai Kujog Sujog ।
Hohi Kuvastu Suvastu Jag,
Lakhai Sulakshan Log ।।65 ।।

Swarath Paramarath Sakal,
Sulabh Ek Hi Or ।
Dwar Doosare Din Ka,
Uchit Na Tulasi Tor ।।66 ।।

Dev,Danuj,Nar,Nag,Khag,
Pret,Pitar Gandharv ।
Bandau Kinnar Raj Nichar,
Kripa Karahu Ab Sarv ।।67 ।।

Ram Vaam Dishi Janaki,
Lakhan Daahini Or ।
Dhyan Sakal Kalyanmay,
Sur Taru Tulasi Tor ।।68 ।।

Jad Chetan Jag,Jeev,Jat,
Sakal Ramay Jaan ।
Vandau Sabke Pad Kamal,
Sada Jori Jug Paani ।।69 ।।

Sita Lakhan Samet Prabhu,
Sohan Tulasidas ।
Harashat Sur Barasat Suman,
Sagun Sumngal Baas ।।70 ।।

Sam Prakash Tam Paakh Duhun,
Naam Bhed Vidhi Keenh ।
Shashi Shoshak Poshak Samuhji,
Jag Jas Apajas Deenh ।।71 ।।

Maan Rakhibo Mangibo,
Piy So Nit Nav Neh ।
Tulasi Teeno Tab Fabein,
Jo Chatak Mati Lehu ।।72 ।।

Priy Lagahi Ati Sabahi Mam,
Bhalit Ram Jas Sang ।
Daru Vicharu Ki Karai Kou,
Bandi Amalay Prasang ।।73 ।।

Binu Satsang Na Hari Katha,
Tehi Binu Moh Na Bhaag ।
Moh Gaye Binu Ram Pad,
Hoi Na Dridh Anuraag ।।74 ।।

Juguti Bedhi Puni Tohi Ahi,
Ramacharit Barataag ।
Pahirahi Sajjan Vimal Ur,
Shobha Ati Anurag ।।75 ।।

Mali, Bhanu, Kisan Sam,
Neeti Nipun Narapaal ।
Praja Bhag Bas Hohinge,
Kabahu Kabahu Kalikal ।।76 ।।

Shyam Surabhi Pay Vishad Ati,
Gunad Karahi Sab Paan ।
Gira Gramya Siyram Jas,
Gavahin Sunahi Sujan ।।77 ।।

Barashat Harashat Log Sab,
Karashat Lakhay Na Koy ।
Tulasi Praja Subhag Te,
Bhoop Bhanu So Hoi ।।78 ।।

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