दिव्य धरा यह भारती लिरिक्स | Divya Dhara Yah Bharti Lyrics

देशभक्ति गीत “दिव्य धरा यह भारती लिरिक्स | Divya Dhara Yah Bharti Lyrics” प्रकाश माली जी के द्वारा गाया हुआ है।


Divya Dhara Yah Bharti Lyrics

दिव्य धरा यह भारती,
छलक रहा आनंद,
नव सौंदर्य संवारती,
शीतल मंद सुगंध,
उतारे आरती जय माँ भारती,
उतारे आरती जय माँ भारती।।

युग युग से अनगिन धाराएँ,
सेवा में तेरी,
गंगा यमुना सिन्धु नर्मदा,
कृष्णा कावेरी,
युग युग से अनगिन धाराएँ,
सेवा में तेरी,
गंगा यमुना सिन्धु नर्मदा,
कृष्णा कावेरी,
जल जीवन से इसकी माटी,
उपजाती है अन्न,
नव सौंदर्य संवारती,
शीतल मंद सुगंध,
उतारे आरती जय माँ भारती,
उतारे आरती जय माँ भारती।।

पावन भावन इसके आंगन,
पंछी चहक रहे,
अंग अंग में रंग सुमन के,
खिलते महक रहे,
पावन भावन इसके आंगन,
पंछी चहक रहे,
अंग अंग में रंग सुमन के,
खिलते महक रहे,
सदा बहाती मीठे फल,
अमृत रस धार अखंड,
नव सौंदर्य संवारती,
शीतल मंद सुगंध,
उतारे आरती जय माँ भारती,
उतारे आरती जय माँ भारती।।

गगन चूमती पर्वत माला,
वैभव का आलय,
सागर जिनके चरण पखारे,
गूंजे जय जय जय,
गगन चूमती पर्वत माला,
वैभव का आलय,
सागर जिनके चरण पखारे,
गूंजे जय जय जय,
सारा जग आलोकीत होता,
पातव तेज प्रचंड,
नव सौंदर्य संवारती,
शीतल मंद सुगंध,
उतारे आरती जय माँ भारती,
उतारे आरती जय माँ भारती।।

प्रगटाती है मंगलकारी,
तत्या सुखद किरण,
ज्ञान भक्ति और कर्म त्रिवेणी,
स्पंदित है कण कण,
प्रगटाती है मंगलकारी,
तत्या सुखद किरण,
ज्ञान भक्ति और कर्म त्रिवेणी,
स्पंदित है कण कण,
परहित मे जीवन जीने मे,
रहती सदा प्रसन्न,
नव सौंदर्य संवारती,
शीतल मंद सुगंध,
उतारे आरती जय माँ भारती,
उतारे आरती जय माँ भारती।।

यही भूमि है जिसकी गोदी,
प्रगटे पुरूषोत्तम,
यही दिया था योगी राज नेे,
कर्म योग अनुपम,
यही भूमि है जिसकी गोदी,
प्रगटे पुरूषोत्तम,
यही दिया था योगी राज नेे,
कर्म योग अनुपम,
सत्य निष्ठ यह पुण्य भूमि है,
सभी विडारे द्वंद्व,
नव सौंदर्य संवारती,
शीतल मंद सुगंध,
उतारे आरती जय माँ भारती,
उतारे आरती जय माँ भारती।।

दिव्य धरा यह भारती,
छलक रहा आनंद,
नव सौंदर्य संवारती,
शीतल मंद सुगंध,
उतारे आरती जय माँ भारती,
उतारे आरती जय माँ भारती।।

Divya Dhara Yah Bharti Chalak Raha Aanand Deshbhakti Geet Lyrics

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