बृहस्पतिदेव की कथा | Brihaspati Dev Vrat Katha

बृहस्पतिदेव की कथा | Brihaspati Dev Vrat Katha : एक दिन, जब राजा जंगल में शिकार करने गया था, तब रानी महल में अकेली थी। उसी समय, बृहस्पतिदेव ने साधु के रूप में राजा के महल में आकर भिक्षा माँगी। रानी ने भिक्षा देने से मना कर दिया और कहा कि वह दान-पुण्य से तंग आ गई है। उसे ऐसा धन नहीं चाहिए जो हर जगह बाँटे।

Brihaspati Dev Vrat Katha

साधु ने उसे समझाने की कोशिश की, परन्तु उसकी बातों पर रानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंत में साधु ने रानी को एक उपाय बताया की दि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तथास्तु! तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्‌टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्‌टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा।

रानी ने साधु के बताए गए उपाय को किया, और कुछ ही समय में उसका सारा धन नष्ट हो गया। धन नष्ट होने के कारण, राजा और उसका परिवार भोजन के लिए तरसने लगे।

तब राजा ने अपनी रानी से कहा कि वह यहाँ रहे और वह खुद दूसरे देश में काम ढूंढने जाएगा। क्योंकि उसको लगा कि उसके देशवासी उसे पहचान जाएंगे और वह कोई छोटा काम नहीं कर सकेगा। ऐसा कहकर राजा दूसरे देश चला गया। वहां पर वह जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचने लगा। इस तरह से वह अपनी ज़िन्दगी बिता रहा था।

वहीं राजा के दूसरे देश जाने के बाद, रानी और उसकी दासी दुःखी हो गईं। उन्हें अपने जीवन में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।

एक दिन, रानी और दासी को सात दिनों तक कुछ नहीं मिला खाने के लिए। तब रानी ने अपनी दासी से कहा, “दासी, हमारे पासवाले शहर में मेरी दीदी रहती हैं। वह बहुत अमीर हैं। तुम उनके पास जाओ और थोड़ा सा खाना लेकर आओ, जिससे हम अपने पेट की भूख मिटा सकें।” दासी रानी की दीदी के पास गई।

उस दिन गुरुवार था, और रानी की दीदी बृहस्पतिवार के व्रत की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की दीदी को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन दीदी ने कुछ जवाब नहीं दिया। दासी बहुत दुःखी हुई और गुस्से से भर गई। वह वापस आकर रानी को सब बता दी। रानी सुनकर बहुत दुःखी हुई और अपनी किस्मत को दोष देने लगी।

वहीं, रानी की दीदी को ये सोचकर चिंता हुई कि उसने अपनी बहिन की दासी से बात नहीं की, और वह दासी बहुत दुःखी हो गई होगी।

कथा सुनकर और पूजा करके, वह अपनी बहिन के घर गई और कहने लगी, “बहिन, मैं गुरुवार के व्रत की पूजा कर रही थी और कथा सुन रही थी। तुम्हारी दासी मेरे यहां आई थी, पर कथा के दौरान हम ना उठते हैं और ना ही बात करते हैं, इसलिए मैं उससे नहीं बोली। वो दासी क्यों आई थी?”

रानी ने कहा, “बहिन, तुमसे क्या छिपा सकती हूँ। हमारे घर में खाने के लिए अनाज नहीं था।” ऐसा कहते हुए रानी की आंखों से आंसू टपकने लगे। उसने अपनी बहिन को विस्तार पूर्वक बताया कि वो और उसकी दासी पिछले सात दिनों से भूखे रहे थे।

रानी की बहिन ने कहा, “देखो बहिन, भगवान बृहस्पति सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। चलो, देखते हैं कि शायद तुम्हारे घर में अब अनाज हो।”

रानी को पहले विश्वास नहीं हुआ, पर उसकी बहिन के कहने पर उसने अपनी दासी को घर के अंदर भेजा। दासी को सचमुच अनाज से भरा हुआ एक बड़ा बर्तन मिल गया। दासी यह देखकर बहुत हैरान हुई।

दासी ने रानी से कहा, “रानीजी, जब हमें खाना नहीं मिलता है, तो हम व्रत रखते हैं। हमें भी इस व्रत और कथा के बारे में सीखना चाहिए, ताकि हम भी व्रत कर सकें।” तब रानी ने अपनी बहिन से गुरुवार के व्रत के बारे में पूछा।

उसकी बहिन ने बताया कि गुरुवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से भगवान का पूजन करना चाहिए, दीपक जलाना होता है, व्रत कथा सुननी होती है और सिर्फ पीले रंग का खाना खाना होता है। इससे बृहस्पति देव खुश होते हैं। व्रत और पूजा की विधि बता कर, रानी की बहिन अपने घर वापस चली गई।

सात दिन बाद, गुरुवार के दिन रानी और दासी ने व्रत रखा। वे घुड़साल में गईं और चना और गुड़ लाईं। फिर उसके साथ भगवान का पूजन किया। लेकिन अब पीले रंग के खाने की समस्या थी। दोनों इस बात को लेकर बहुत दुःखी थे। चूंकि उन्होंने व्रत रखा था, इसलिए बृहस्पतिदेव खुश थे। बृहस्पतिदेव ने एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया।

उसके बाद, वे सभी हर गुरुवार को व्रत और पूजा करने लगीं। बृहस्पतिदेव की कृपा से उनके पास धन-संपत्ति वापस आ गई, पर रानी फिर से दान पुण्य में और गुरुवार के व्रत में आलस्य करने लगी।

तब दासी ने कहा, “रानीजी, याद करो कि पहले भी आप ऐसे ही आलस्य करती थीं, और धन को संभालने में मुश्किल होती थी। इस वजह से हमारी वह दशा हुई थी। अब बृहस्पतिदेव की कृपा से धन मिला है, तो फिर से आलस्य मत करो।”

दासी ने रानी को समझाया कि हमें बड़ी मुश्किलों के बाद यह धन मिला है। इसलिए हमें अच्छे काम करने चाहिए, जैसे कि भूखे लोगों को खाना खिलाना और धन को शुभ कामों में खर्च करना। इससे हमारी इज्जत बढ़ेगी, स्वर्ग की प्राप्ति होगी, और हमारे पूर्वज खुश होंगे। दासी की बात सुनकर, रानी ने अपना धन अच्छे कामों में खर्च करना शुरू किया, और पूरे शहर में उसकी इज्जत बढ़ने लगी।

बोलो बृहस्पति देव की जय॥

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