सोमवार व्रत कथा आरती | Somvar Vrat Katha Aarti

सोमवार व्रत कथा आरती (Somvar Vrat Katha Aarti) : एक समय की बात है, एक बड़े शहर में एक बहुत ही धनी व्यापारी रहता था। वह इतना बड़ा व्यापारी था कि उसका काम बहुत दूर-दूर तक फैला हुआ था। शहर के सभी लोग उसे सम्मान देते थे। लेकिन फिर भी उस व्यापारी को खुशी नहीं मिली, क्योंकि उसके पास कोई बेटा नहीं था। वह हमेशा चिंतित रहता था कि किसको वह अपना काम सौंपेगा।

व्यापारी भगवान शिव का भक्त था और शिव जी के मंदिर में हर सोमवार जाता था। वह वहां पूजा-अर्चना करता और शाम के समय शिवजी के सामने घी का दीपक जलाता था। उसकी श्रद्धा देखकर माँ पार्वती खुश हो गईं और भगवान शिव से व्यापारी की मनोकामना पूरी करने के लिए कहीं।

Somvar Vrat Katha Aarti

भगवान शिव ने कहा कि हर किसी को उसके कर्मों के हिसाब से फल मिलता है। जैसा हम काम करते हैं, हमें वैसा ही फल मिलता है। इसलिए यह व्यापारी भले ही मेरा बड़ा भक्त है परन्तु इसके भाग्य में पुत्र नहीं है।

लेकिन माँ पार्वती मान नहीं गईं। उन्होंने बार-बार भगवान शिव से व्यापारी की मनोकामना के लिए प्रार्थना की। अखिरकार, माता के प्यार और आग्रह को देखकर भगवन शिव ने उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया।

परन्तु भोलेनाथ ने माँ पार्वती को बताया कि वह व्यापारी को बेटे का वरदान दे देंगे, लेकिन उसका बेटा केवल 16 साल की उम्र तक जीवित रहेगा। उसी रात, भगवान शिव ने व्यापारी को सपने में दिखाई दिया और उसे बेटे का वरदान दिया। वह व्यापारी खुश था, लेकिन उसके बेटे की कम उम्र की चिंता ने उसकी खुशी को कम कर दिया था।

व्यापारी हर सोमवार को भगवान शिव की पूजा करता रहा। कुछ महीनों बाद, उसके घर में एक प्यारा सा बच्चा हुआ। सभी लोग बहुत खुश थे, लेकिन व्यापारी को अभी भी चिंता थी कि उसका बेटा केवल 16 साल की उम्र तक जीवित रहेगा।

एक दिन व्यापारी के बेटे का जन्मदिन था तब व्यापारी के बेटे का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया गया। फिर भी, व्यापारी को पूरी तरह से खुश नहीं हो पाया, क्योंकि उसे अपने बेटे की कम उम्र की चिंता सता रही थी। जब व्यापारी का बेटा 12 साल का हो गया, तो व्यापारी ने उसे अपने मामा के साथ पढ़ाई के लिए वाराणसी भेज दिया। बच्चा अपने मामा के साथ शिक्षा की प्राप्ति के चल पड़ा। मां भांजा रस्ते में जहा भी रुकते वहा वे यज्ञ करवाते और ब्राह्मणो को खाना खिलाते।

एक दिन, मामा और उसका भांजा एक सुंदर से शहर में पहुंचे। उस दिन वहां के राजा की बेटी की शादी हो रही थी, इसलिए पूरे शहर को खूबसूरती से सजाया गया था। शाम को दूल्हे की बारात पहुंची, लेकिन दूल्हे के पिता को चिंता हो रही थी क्योंकि उसका बीटा किसी वजह से एक आँख से काणा हो गया था। दूल्हे के पिता को दर था कि अगर राजा को इसके बारे में पता चला, तो वह शादी रोक देंगे।

दूल्हे के पिता को एक विचार सूझा। वे सोचे कि व्यापारी के बेटे को दूल्हा बना कर राजकुमारी से शादी करवा दें। शादी के बाद उसे कुछ पैसे दे कर विदा कर देंगे और राजकुमारी को अपने शहर में ले जाएंगे।

दूल्हे के पिता ने मामा से इस बारे में बात की। मामा को धन की लालच हो गई और उसने दूल्हे के पापा की बात मान ली। उसने अपने भांजे को दूल्हे के कपड़े पहना दिए और राजकुमारी से उसकी शादी करवा दी।

राजा ने बहुत सारा धन देकर अपनी बेटी को विदा किया। शादी के बाद, जब लड़का और राजकुमारी साथ साथ वापस जा रहे थे, तो लड़का अपनी सच्चाई नहीं छिपा सका। उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया, “राजकुमारी, तुमने मेरे साथ शादी की है। मैं वाराणसी जा रहा हूँ पढ़ाई करने के लिए। अब तुम्हें उस लड़के के साथ रहना होगा, जो एक आँख से काणा है।”

राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखे हुए शब्द पढ़े, और उसने उस काने लड़के के साथ जाने से मना कर दिया। जब राजा को सब कुछ पता चला, तो उसने अपनी बेटी को वापस महल में बुला लिया।

वहीं उधर व्यापारी का बेटा अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया और वहां के गुरुकुल में पढ़ाई शुरू कर दी। जब वह 16 साल का हो गया, तो उसने एक यज्ञ करवाया। यज्ञ के बाद, उसने सभी ब्राह्मणों को खाना खिलाया और उन्हें अनाज और कपड़े दान में दिए। रात को वह अपने कमरे में सो गया। शिव भगवान की कृपा और उनके वरदान के अनुसार उस लड़के के प्राण साइट हुए ही निकलने थे। तो जब वह सोया तो उसके प्राण निकल गए। सुबह जब मामा ने अपने भांजे को मृत देखा तो वह रोने बिलखने लगा। यह देखकर आसपास के लोग संवेदना दिखने लगे।

लड़के का मामा बहुत रो रहा था। उस समय, भगवान शिव और माता पार्वती यही पास से गुजर रहे थे। माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा, “आपसे विनती है कि इस व्यक्ति के कष्ट को दूर कर दीजिये।”

भगवान शिव और माता पार्वती गायब होकर उसके पास गए और देखा कि वह व्यापारी का बेटा है। भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा, “यह वही लड़का है जिसे हमने 16 साल की उम्र तक जीने का वरदान दिया था। अब उसकी समय सीमा समाप्त हो गई है।”

माँ पार्वती ने फिर से भगवान शिव से प्रार्थना की और उस लड़के को फिर से जिंदा करने की बात कही। भगवान शिव ने सुनी माता पार्वती की बात, और लड़के को जीवन देने का वरदान दिया। थोड़ी देर में, वह लड़का जी उठा।

फिर, लड़का और उसका मामा अपने शहर की ओर चले। वे उसी शहर में पहुंचे जहां लड़के की शादी हुई थी। वहां पर उन्होंने एक और यज्ञ का आयोजन किया। जब यज्ञ हो रहा था, तब वही से राजा गुजर रहा था। राजा ने लड़के और उसके मामा को पहचान लिया।

राजा ने यज्ञ की समाप्ति के बाद, मामा और लड़के को महल में ले जाकर उन्हें वहाँ कुछ दिन रुकने को कहा। वे उन्हें ढेर सारे धन, कपड़े और चीजें देते हुए, राजकुमारी के साथ उन्हें विदा करने लगे।

वहीं उधर व्यापारी और उसकी पत्नी बिना खाए-पिए अपने बेटे का इंतजार कर रहे थे। वे दोनों ने कसम खाई थी कि अगर उन्हें अपने बेटे की मौत की खबर मिली, तो वे अपनी जान दे देंगे। लेकिन जब उन्हें अपने बेटे के वापस आने की खुशखबरी मिली, तो वे बहुत खुश हो गए। व्यापारी अपनी पत्नी और दोस्तों के साथ शहर के दरवाज़े पर पहुंचा।

जब व्यापारी को पता चला कि उसके बेटे की शादी हो गई है, वह और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए। राजकुमारी को देखकर, उनकी खुशी दुगनी हो गई। उसी रात, भगवान शिव ने व्यापारी के सपने में आकर कहा, “मैंने तुम्हारे सोमवार के व्रत करने और कथा सुनने से खुश होकर तुम्हारे बेटे को लंबी आयु दी है।” व्यापारी यह सुनकर बहुत ही खुश हुआ।

शिव भक्त होने तथा सोमवार का व्रत करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं, इसी प्रकार जो भक्त सोमवार का विधिवत व्रत करते हैं और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

सोमवार व्रत कथा आरती

आरती करत जनक कर जोरे।
बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे॥

जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाए।
सब भूपन के गर्व मिटाए॥

तोरि पिनाक किए दुइ खंडा।
रघुकुल हर्ष रावण मन शंका॥

आई सिय लिए संग सहेली।
हरषि निरख वरमाला मेली॥

गज मोतियन के चौक पुराए।
कनक कलश भरि मंगल गाए॥

कंचन थार कपूर की बाती।
सुर नर मुनि जन आए बराती॥

फिरत भांवरी बाजा बाजे।
सिया सहित रघुबीर विराजे॥

धनि-धनि राम लखन दोउ भाई।
धनि दशरथ कौशल्या माई॥

राजा दशरथ जनक विदेही।
भरत शत्रुघन परम सनेही॥

मिथिलापुर में बजत बधाई।
दास मुरारी स्वामी आरती गाई॥

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