बिंदायक जी की कहानी – Bindayak Ji Ki Kahani

Bindayak Ji Ki Kahani

1. बिंदायक जी की कहानी

जब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी से विवाह करने के लिए उनके धाम को प्रस्थान करने लगे, तब उन्होंने सभी देवी-देवताओं को उनके शादी की बारात में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा। जब सभी सुरेश्वर बारात के लिए तैयार हो रहे थे, तो उन्होंने एक निर्णय लिया कि गणेश जी को उनके साथ नहीं ले जाएंगे। उनका मानना था कि गणेश जी अत्यधिक भोजन करते हैं और उनका शरीर भारी-भरकम है। उनके पांव उखले हुए, कान छाजिले, मस्तक विशाल और सम्पूर्ण रूप में वे भीमसमान दिखते हैं। “इनको ले जाकर हम क्या प्राप्त करेंगे? बेहतर है गणेश जी को घर की सुरक्षा के लिए यहीं छोड़ दें।” ऐसा कहकर सभी देवी-देवताएं बारात में शामिल होने के लिए चल दिए।

इसके बाद, नारद मुनि वहां पहुंचे और गणेश जी के पास जाकर बोले, “हे विनायक जी, आपका बहुत अपमान किया गया है। उन्होंने माना कि आपके साथ बारात में जाना अनुचित है, इसलिए आपको यहाँ छोड़ दिया।” सुनकर विनायक जी ने अपने वाहन, मूषक जी, को आज्ञा दी कि वे संपूर्ण पृथ्वी को खोदकर खोखला कर दें। मूषक जी ने इस आज्ञा का पालन किया और पूरी धरती को खोखला कर दिया। जब भगवान विष्णु की बारात वहाँ पहुंची, तो उनके रथ का पहिया धरती में अटक गया। सभी ने मिलकर कोशिश की रथ के पहिए को बाहर निकालने की, लेकिन वे असफल रहे।

रथ के पहिये को निकालने का कार्य असफल होने पर, खाती जी को वहां बुलाने का निर्णय लिया गया। खाती जी ने जगह पर पहुंचकर स्थिति का पूरा आकलन किया। उन्होंने ध्यानपूर्वक रथ के पहिये को हाथ लगाया और उच्च स्वर में बोले, “जय गजानंद गणेश जी महाराज की जय!” इस उक्ति के बाद, रथ का पहिया आश्चर्यजनक रूप में निकल गया।

लोगों का मुँह खुलकर रह गया, उन्होंने खाती जी से पूछा, “आपने गणेश जी का नाम क्यों लिया?” खाती जी ने उत्तर दिया, “जब तक हम गजानंद गणेश जी महाराज का स्मरण नहीं करते, तब तक किसी भी कार्य में सिद्धि नहीं हो सकती। गणेश जी के नाम का सच्चे दिल से सुमिरण करने पर, जीवन के सभी कठिनाईयां आसान हो जाती हैं।”

तब सब लोगों ने अपनी भूल का अहसास किया। उन्होंने त्वरित एक व्यक्ति को गणेश जी को बुलाने के लिए भेजा और उनसे माफी मांगी। पहले गणेश जी के विवाह की विधि को पूरा किया गया, और उसके बाद भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह भी संपन्न हुआ। इस प्रकार, सभी देवी-देवताओं के मुखों पर खुशी और प्रसन्नता का वातावरण बन गया।

बिंदायक जी महाराज की इस कथा को सुनने और कहने वाले, उनका नाम लेने वाले, और सभी के कार्यों में सिद्धि लाने वाले का भी भला हो। “जय बिंदायक जी महाराज!”

2. Bindayak Ji Ki Kahani

किसी समय में एक परम भक्तिशील ब्राह्मण जीवन बिता रहे थे, जिनकी प्रतिदिन की शुरुआत गंगा माँ के पवित्र जल में स्नान करके होती थी। स्नान करने के बाद, वे बिंदायक जी के मंदिर में जा कर विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते थे और बिंदायक जी के चमत्कारों भरी कथा सुनते थे।

लेकिन उनकी पत्नी, ब्राह्मणी, इन सब धार्मिक कृतियों को ठीक से समझ नहीं पाती थी। उनका कहना था कि “तुम प्रतिदिन सुबह ही पूजा में लग जाते हो, मैं घर के सभी काम अकेले कैसे संभालूं? क्या तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं है?”

ब्राह्मण कुछ उत्तर नहीं देते और अपने भक्ति में ही लीन रहते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि ब्राह्मणी ने बिंदायक जी की मूर्ति को छुपा दिया। जब ब्राह्मण वापस लौटे और मूर्ति नहीं देखी, तो उनकी चिंता बढ़ गई। “मैं बिना बिंदायक जी की पूजा के ना ही खाऊंगा और ना ही पानी पिऊंगा,” उन्होंने दृढ़ निश्चय से कह दिया।

ब्राह्मणी ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, पर ब्राह्मण अपने निर्णय पर अटल रहे। इस पर बिंदायक जी की मूर्ति खुश हो कर हंसी। ब्राह्मणी ने तब अपनी भूल मानते हुए मूर्ति वापस ले आई।

अचानक ही, बिंदायक जी की मूर्ति ने बोल कर कहा, “तुमने मेरी सेवा में अपना जीवन समर्पित किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। कुछ मांगो।”

ब्राह्मण ने तब अन्न, धन, और जीवन के सभी सुखों की कामना की। बिंदायक जी ने उन्हें सब कुछ दिया। ब्राह्मणी भी अब पूजा में श्रद्धा रखने लगी और घर में हर्ष-उल्लास भर गया।

अतः बोलिए, गजानंद गणेश जी महाराज की जय! बिंदायक जी महाराज की जय! हे बिंदायक जी, जैसा आपने ब्राह्मण को सुख दिया, वैसा ही सबको दें। कथा सुनने वाले, कथा कहने वाले और पूरे परिवार को भी।

3. Bindayak Ji Ki Kahani

दो भाग्यशाली और अभाग्यशाली देवरानी-जेठानी के बीच एक अनूठी कथा है। देवरानी के पास धन-संपत्ति का कोई कमी नहीं थी, जबकि जेठानी विपरीत स्थिति में थी और उनके पास धन की भारी कमी थी। जेठानी की आस्था भगवान गणेश में अत्यधिक थी।

वह अपनी धनदानी देवरानी के घर जाकर आटा पीसने का कार्य करती थी। वह जो कपड़ा आटा छानने के लिए प्रयोग करती थी, उसी कपड़े को घर लेकर जाती, और उसे पानी में मिलाकर अपने पति को पिला देती थी।

एक दिन, देवरानी का पुत्र इस पूरे प्रक्रिया को देख लेता है और अपनी मां को पूरी बात बता देता है। देवरानी इसे सुनकर अत्यंत क्रोधित हो जाती है और जेठानी से कहती है कि “मेरे घर का आटा छानने का कपड़ा यहीं रखकर जाना होगा।” जेठानी शरणागत होकर वैसा ही करने लगती है।

लेकिन, जब वह अपने घर लौटती है, तो उसका पति भूख से कांपते हुए कहता है, “मुझे वह आटे का घोल पिला, मुझे भूख लगी है।” जेठानी उसे बताती है कि आज उन्होंने कपड़ा वहीं छोड़ दिया है। पति, क्रोध से भरकर, उसे मारने लगता है। उस रात, जेठानी भगवान गणेश की पूजा करते हुए सो जाती है।

गणेश जी उसके सपने में आते हैं और पूछते हैं, “तुम इतनी दुखी क्यों हो?” जेठानी उनसे कहती है, “मैं अपने पति को आटे का घोल पिलाने के लिए अपनी देवरानी के घर से कपड़ा लेकर आती थी, लेकिन आज उन्होंने मुझसे कपड़ा रखने को कह दिया। इस वजह से मेरे पति ने मुझे मार दिया।”

श्री गणेश जी ने मुस्कराकर कहा, “मैंने घर-घर जाकर तिलकुट प्राशित किया है, और अब मुझे शौचालय जाना है। कृपया मुझे दिशा निर्देश दें, कहां जाऊं?” उनके मित्र ने हंसते हुए उत्तर दिया, “महाराज, यहां बहुत सारी खुली जगहें हैं, आप जहां चाहें वहां जा सकते हैं।” गणेश जी ने उनकी बातों का सम्मान किया, और वहां से चले गए।

जब वे वापस लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनका घर हीरों से सजा हुआ है और चमक रहा है। इसे देखकर उन्होंने धन को इकट्ठा करना शुरू किया, इतना होते ही उनकी देवरानी ने उनके घर की ओर ध्यान दिया।

देवरानी ने अपने बेटे को भेजा और कहा, “जाकर देखो, आज ताई क्यों नहीं आई।” बेटे ने जाकर देखा और जल्दी से वापस आकर अपनी मां से कहा, “मां, ताई के घर में धन का पर्वत है।” देवरानी ने उत्कंठा में भरकर जेठानी से पूछा, “तुम्हारे घर में इतना धन कहां से आया?” जेठानी ने पूरी घटना का विवरण दिया।

देवरानी ने उसे सुनकर अपने पति से कहा, “मुझे भी लकड़ी से मारो, जैसे जेठानी के पति ने उसे मारा और उनके घर में धन की बरसात हुई।” उसके पति ने कहा, “तुम क्यों धन के पीछे भाग रही हो?” पर देवरानी ने नहीं सुना और उसके पति ने उसे लकड़ी से मारा। उसने घर को खाली करके, गणेश जी के नाम का स्मरण करते हुए सो गई।

कुछ समय बाद, जब वह उठी, तो उसने देखा कि उसके घर में कचरा है। वह निराश होकर बोली, “महाराज, आपने मेरे साथ अन्याय किया।” गणेश जी ने उससे कहा, “तुमने धन के लिए मार खाई, जबकि तुम्हारी जेठानी ने धर्म के नाम पर किया।”

देवरानी ने कहा, “महाराज, इस कचरे को हटा दो। मुझे धन की इच्छा नहीं है।” गणेश जी ने उसे सलाह दी, “अपने पास के धन का आधा हिस्सा जेठानी को दो, और मैं इस कचरे को हटा दूंगा।” देवरानी ने ऐसा ही किया, और गणेश जी ने उनकी समस्या का समाधान किया।

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