विनायक जी की कथा – Vinayak Ji Ki Katha

Vinayak Ji Ki Katha

Vinayak Ji Ki Katha

एक गाँव में एक माँ और उसकी कन्या निवास करते थे। एक सुंदर दिन, कन्या अपनी माँ के पास जाकर उत्सुकता से कहने लगी, “माँ, आपने सुना है ना, गाँववाले सब मिलकर गणेश मेला देखने जा रहे हैं। मैं भी जाना चाहती हूँ।”

माँ ने चिंता भरी आवाज़ में कहा, “बेटा, वहाँ पर भीड़ बहुत होगी। ध्यान रखना, कहीं ठोकर ना खा जाओ और चोट ना लग जाए।”

लेकिन कन्या ने अपनी माँ की चेतावनी को अनसुना कर दिया और मेले की ओर बढ़ गई। माँ ने उसे जाते वक्त दो लड्डू और एक घण्टी में थोड़ा पानी दिया, और सलाह दी कि, “एक लड्डू श्री गणेश जी को अर्पित करना और उन्हें पानी भी पिला देना। दूसरा लड्डू और बचा हुआ पानी तुम खुद ले लेना।”

कन्या मेले में पहुंची और गणेश जी के प्रतिमा के सामने बैठ गई। वह उनसे बातें करने लगी, “मेरे पास एक लड्डू और कुछ पानी आपके लिए है, और दूसरा लड्डू और शेष पानी मेरे लिए है।” इस प्रकार, पूरी रात वहीं बित गई।

गणेश जी ने यह सब देखकर सोचा, “यदि मैंने इसके द्वारा दिए गए लड्डू और पानी को नहीं स्वीकारा, तो यह कन्या अपने घर नहीं लौटेगी।” सोचते-सोचते, गणेश जी एक युवक के रूप में प्रकट हुए, और कन्या से लड्डू लेकर खा लिया, पानी भी पी लिया। फिर उन्होंने कहा, “अब तुम जो चाहो, वह माँगो।”

कन्या अपने दिल में सोचने लगी, “क्या माँगूं? क्या मैं अन्न माँगूं, धन माँगूं, या शायद एक उत्तम वर माँगूं? या फिर किसानी के लिए खेत, या शायद एक महल माँगूं?” गणेश जी ने उसके मन की बात समझ ली और उससे कहा, “तुम अपने घर वापस जाओ, जो कुछ भी तुमने सोचा है, वह सब तुम्हें प्राप्त होगा।”

जब कन्या अपने घर लौटी, तो माँ ने पूछा, “इतनी देर क्यों हो गई?” कन्या ने उत्तर दिया, “माँ, मैंने वैसा ही किया जैसा आपने मुझसे कहा था।” और फिर उसने देखा कि जो कुछ भी वह सोच रही थी, वह सबकुछ उसे मिल गया।

इस कथा से हमें यह सिखने मिलता है कि भगवान् की आराधना में श्रद्धा और विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। कन्या ने अपनी माँ की बातों का पालन किया और श्रद्धा से गणेश जी की पूजा की। इसी प्रकार, हमें भी अपने काम में श्रद्दा और उत्साह रखना चाहिए। जब हम अपने कार्य में श्रद्दा और पूरी ईमानदारी से लगे रहते हैं, तो भगवान भी हमें उसका ठोस फल देते हैं।

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