Mohini Ekadashi Vrat Katha : एक समय की बात है, श्रीराम ने अपने गुरुदेव से पूछा कि क्या कोई ऐसा व्रत है जिससे सभी दुःख और पाप दूर हो जाएं? क्योंकि उन्होंने सीताजी के बिना बहुत दुःख झेले थे।
महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि श्रीराम ने बहुत सुंदर सवाल पूछा है। वैशाख महीने में आने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से सभी दुःख और पाप दूर हो जाते हैं।
एक बार की बात है, एक राजा नाम के द्युतिमान ने एक नगरी में राज किया। वहां एक वैश्य नाम के धनपाल रहता था। वह बहुत धर्मात्मा और भगवान विष्णु का भक्त था। उसने नगर में बहुत सारे भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, तालाब, धर्मशाला आदि बनवाए थे।
धनपाल के पाँच बेटे थे। सबसे छोटा बेटा, धृष्टबुद्धि, बहुत पापी था। वह अच्छे लोगों की संगति नहीं करता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इस वजह से पिता ने उसे घर से निकाल दिया। धृष्टबुद्धि ने अपने सामान बेचकर अपना गुजारा किया।
अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। एक दिन, उसे पकड़ा गया, लेकिन जब पता चला कि वह वैश्य का पुत्र है तो उसे सख्त चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। लेकिन, वह दोबारा गड़बड़ करने में फंस गया, और इस बार उसे राजा के आदेश पर जेल में डाल दिया गया। वहाँ उसे बहुत कष्ट हुआ। बाद में राजा ने उसे शहर से चले जाने को कहा।
वह बच्चा शहर से दूर एक जंगल में चला गया। वहां वह जंगली जानवरों और पक्षियों को पकड़कर खाने लगा। कुछ समय बाद, वह एक शिकारी बन गया और धनुष-बाण लेकर जानवरों को मारकर खाने लगा।
एक दिन, वह भूख और प्यास से परेशान होकर खाने की तलाश में एक बुढ़े कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस दिन ऋषि नदी से स्नान करके लौट रहे थे। ऋषि के गीले कपड़ों के छींटे उस बच्चे पर पड़े और उसके दिमाग में कुछ अच्छी बातें आ गईं।
बच्चा ऋषि के सामने आकर हाथ जोड़कर बोला, “हे महात्मा! मैंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत बुरे काम किए हैं। कृपया मुझे ऐसा उपाय बताइए, जिससे मैं इन पापों से मुक्ति पा सकूं।” ऋषि ने उसकी सच्ची इच्छा को समझते हुए कहा, “तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी एकादशी का व्रत करो। इसके कारण, तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।”
बच्चा ऋषि की बात मानकर उस व्रत की विधि के अनुसार व्रत करने लगा। धीरे-धीरे, उसके सभी पाप दूर हो गए, और वह सचमुच बदल गया। अंत में, वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को चला गया।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में हम अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकते हैं, बस हमें सच्ची इच्छा और दृढ़ संकल्प रखना होता है। इस मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व बड़ा है। इसके माहात्म्य को सुनने और पढ़ने से बड़े-बड़े पुण्य मिलते हैं।Mohini Ekadashi Vrat Katha