सीता अवतरण पौराणिक कथा | Sita Navmi Pauranik Katha

Sita Navmi Pauranik Katha : पुरातन कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है, जब मारवाड़ के किसी ग्राम में देवदत्त नामक धर्मविशारद ब्राह्मण निवास करते थे। वह अत्यन्त गुणवान था, लेकिन उसकी सुंदर पत्नी, शोभना, उसकी योग्यता के विपरीत अन्यथा चरित्रवाली थी।

किस्मत के इस खेल में, देवदत्त एक दिन ग्राम के दूसरे हिस्से में भिक्षा लेने के लिए गया, जबकि शोभना अपने व्यभिचारी आचरण में उलझ गई। उसकी कुटिलता का परिणामस्वरूप, गांव के लोगों के बीच उसकी कुफ्रत की अफवाहें फैल गईं। उसकी अवमानना के बावजूद, वह अपनी गंदी हरकतों को अंजाम देती रही।

सच तो यह है कि शोभना के पापों की श्रृंखला के कारण, वह कठोर और क्रूर दुखों को सहने के लिए लगातार बदलती रही। किसी दिन, वह अपनी भटकती-भटकती आत्मा के साथ कौशलपुरी नगर में पहुंच गई, जहां वह सीता नवमी के पावन उत्सव के मध्य भूख और प्यास से त्रस्त थी।

विधर्मी ने देवताओं और मनुष्यों की दया और सहायता की प्रार्थना की। वह भोजन के लिए अधिकारियों और ग्रामवासियों से गुहार लगा रही थी। उसे भोजन चाहिए था, वरना वह भूख से मर जाने वाली थी। उसकी करुण पुकार सुनकर, एक दयालु आत्मा ने उसे तुलसी और जल दिया। वह ताउम्र की भूख से अवसादित होकर मर गई।

वास्तव में, उस भटकती हुई आत्मा के लिए, सीता नवमी के व्रत का पालन करना अच्छे कर्मों का प्रारंभ था। इस पवित्र व्रत के कारण, उसके सभी पाप धुल गए, और वह अनंत काल तक स्वर्ग में सुख और शांति से जीती रही।

समय के साथ, वह पुनर्जीवित होकर कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी कामकला के रूप में विख्यात हुई। वह जातिस्मरा साध्वी बनी, और अपने राज्य में अनेक देवालय निर्माण करवाये। उसने जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई, और धर्म और सत्य का मार्ग अपनाया।

Sita Navmi Pauranik Katha

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