मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम का अति पावन भजन “हम वन के वासी लिरिक्स | Hum Van Ke Vasi Nagar Jagane Aaye Lyrics” – रविंद्र जैन जी के द्वारा गाया गया है। इस भजन में राम भक्ति की महिमा का बखान किया गया है।
Hum Van Ke Vasi Nagar Jagane Aaye Lyrics
हम वन के वासी
नगर जगाने आए
वन वन डोले कुछ ना बोले
सीता जनक दुलारी
फूल से कोमल मन पर सहती
दुःख पर्वत से भारी
धर्म नगर के वासी कैसे
हो गए अत्याचारी
राज धर्म के कारण लूट गयी
एक सती सम नारी
हम वन के वासी
नगर जगाने आए
सीता को उसका खोया
माता को उसका खोया
सम्मान दिलाने आए
हम वन कें वासी
नगर जगाने आए
जनक नंदिनी राम प्रिया
वो रघुकुल की महारानी
तुम्हरे अपवादो के कारण
छोड़ गई रजधानी
महासती भगवती सिया
तुमसे ना गयी पहचानी
तुमने ममता की आँखों में
भर दिया पिर का पानी
भर दिया पिर का पानी
उस दुखिया के आंसू लेकर
उस दुखिया के आंसू लेकर
आग लगाने आए
हम वन कें वासी
नगर जगाने आए
सीता को ही नहीं
राम को भी दारुण दुःख दीने
निराधार बातों पर तुमने
हृदयो के सुख छीने
पतिव्रत धरम निभाने में
सीता का नहीं उदाहरण
क्यों निर्दोष को दोष दिया
वनवास हुआ किस कारण
वनवास हुआ किस कारण
न्ययाशील राजा से उसका
न्ययाशील राजा से उसका
न्याय कराने आए
हम वन कें वासी
नगर जगाने आए
हम वन के वासी
नगर जगाने आए
सीता को उसका खोया
माता को उसका खोया
सम्मान दिलाने आए
हम वन कें वासी
नगर जगाने आए
Hum Van Ke Vasi Nagar Jagane Aaye Lyrics PDF
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